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ज़रूर, यहाँ एक हिंदी गीत है जिसमें एक छात्र कक्षा 11 या 12 में दर्द और फेल होने के डर से जूझ रहा है, और उसे अपने माता-पिता और रिश्तेदारों के सामने असफल होने का भी डर है:
(Verse 1)
सीने में कसक है, आँखों में नमी है
किताबें खुली हैं, पर ध्यान कहीं और है
हर पन्ना सवाल है, हर अक्षर डर है
क्या होगा अगर ये इम्तिहान बेकार है?
(Chorus)
बारहवीं की दहलीज पे, खड़ा हूँ काँपता
सफलता का बोझ है, दिल मेरा हाँफता
माँ-बाप की उम्मीदें, रिश्तेदारों की बातें
असफल हुआ तो कैसे दिखाऊँ ये आँखें?
(Verse 2)
रातें हैं बेकल, नींदें हैं अधूरी
हर आहट पे लगता है, जैसे सज़ा है ज़रूरी
वो दोस्त जो आगे हैं, उनसे भी डर लगता है
कहीं मैं अकेला ना रह जाऊँ, ये सोच के दिल दुखता है
(Chorus)
बारहवीं की दहलीज पे, खड़ा हूँ काँपता
सफलता का बोझ है, दिल मेरा हाँफता
माँ-बाप की उम्मीदें, रिश्तेदारों की बातें
असफल हुआ तो कैसे दिखाऊँ ये आँखें?
(Bridge)
ये दर्द किसे बताऊँ, ये डर मैं कैसे छुपाऊँ
अंदर ही अंदर घुटता हूँ, किससे सहारा पाऊँ
कभी लगता है छोड़ दूँ, ये सब कुछ आसान है
फिर याद आती है उनकी, जो मुझ पर कुर्बान हैं
(Chorus)
बारहवीं की दहलीज पे, खड़ा हूँ काँपता
सफलता का बोझ है, दिल मेरा हाँफता
माँ-बाप की उम्मीदें, रिश्तेदारों की बातें
असफल हुआ तो कैसे दिखाऊँ ये आँखें?
(Outro)
बस एक मौका दे दे, ऐ ज़िंदगी मुझको
कि साबित कर सकूँ मैं, नहीं हूँ मैं कमजोर तो
ये डर भी मिट जाएगा, ये दर्द भी सह लूँगा
गर साथ हो अपनों का, तो हर मुश्किल से लड़ लूँगा।
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