Prompt
(Verse 1)
चुप्पी के पर्दों में छुपे हैं दर्द हज़ार,
हर चीख़ में है दबा हुआ एक सवाल।
क्यों इस जहाँ में इंसानियत है मौन,
कहाँ खो गया सबका आत्म-सम्मान?
जिन्होंने छीन ली मासूमियत, वो कौन थे,
क्यों इंसानियत के नाम पर भेड़िए बने थे?
आंखों में आँसू और दिल में आग है,
अब न्याय की राहों पर चलने की बात है।
(Chorus)
आवाज़ उठा, अब चुप ना रह,
अपने हक़ के लिए लड़, अब डर ना सह।
हमारे हौसले को तू तोड़ नहीं सकेगा,
तेरी काली रात के बाद नया सवेरा आएगा।
(Verse 2)
ये दर्द सिर्फ मेरा नहीं, सबका है,
हर बेटी की आँखों में सवाल छुपा है।
कब तक सहेंगे हम ये जुल्म यूँ ही,
अब तो टूटेंगे बंधन, उड़ान होगी सही।
हम नहीं डरेंगे, ये अंधेरा खत्म होगा,
सच्चाई की रौशनी से जग फिर से रोशन होगा।
ये पाप का खेल अब खत्म करेंगे हम,
न्याय की मशाल हम जलाएंगे हरदम।
(Chorus)
आवाज़ उठा, अब चुप ना रह,
अपने हक़ के लिए लड़, अब डर ना सह।
हमारे हौसले को तू तोड़ नहीं सकेगा,
तेरी काली रात के बाद नया सवेरा आएगा।
(Bridge)
एक नई सुबह, जहां डर का नाम न हो,
हर दिल में बस इंसानियत का पैगाम हो।
तेरी ये ज़मीन, मेरी भी आसमान है,
हम सब साथ हैं, ये हमारा संविधान है।
(Chorus)
आवाज़ उठा, अब चुप ना रह,
अपने हक़ के लिए लड़, अब डर ना सह।
हमारे हौसले को तू तोड़ नहीं सकेगा,
तेरी काली रात के बाद नया सवेरा आएगा।